Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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संत साहित्य की परम्परायें

    1 Author(s):  SUDHA NIKETAN RANJANI

Vol -  3, Issue- 1 ,         Page(s) : 66 - 69  (2012 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

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Abstract

संत साहित्य को ‘बानी’ या ‘साखी’ कहा जाता है।बानीका संबंध बोलने से है। साखी ‘साक्षी’ शब्द का अपभ्रंश है जिसका तात्पर्य है गवाही देना । अर्थात् जो कहा जा रहा है उसे घटितहोते देखा भी गया है । इसलिए संत कबीरदास कहते हैं ‘मैं कहता आंखन की देखी’ । “असल में साखी का मतलब ही है कि पूर्वतर साधकों की बात पर कबीरदास अपनी साक्षी या गवाही दे रहे हैं । अर्थात् इस सत्य का अनुभव ये भी कर चुके हैं । जो लोग कबीरदास को साधक न समझकर केवल कवि समझना चाहते हैं , वे प्रायः कुछ उल्टी-सीधी बातें कर जाते हैं, जो उनके पांडित्य के लिए शोभाजनक नहीं होती।


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