Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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भारतीय साहित्य में कर्ण
1 Author(s): DR. PRAVIN PANKAJ
Vol - 7, Issue- 10 , Page(s) : 36 - 45 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में एक ऐसा व्यक्तित्व,जिसने यद्यपि अधर्म का साथ दिया,फिर भी जगत में उसको बड़े ही आदरणीय व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है तथा अधर्म मार्ग पर चलने के बावजूद भी जिसका प्रभाव जनता पर पड़े बिना न रह सका,खासकर साहित्यिक समाज पर वह ऐसा छाया जैसे सूर्य की किरणें धरा पर छाती हैं।छाए भी क्यों नहीं,वह कोई साधरण मानव तो था नहीं,वह तो स्वयं सूर्य का पुत्र कर्ण था। क्या हुआ कि उसे सूर्य का पुत्र होने के बावजूद सुतपुत्र कहलाना पड़ा।भोज-कन्या कुन्ती और सूर्य का यह पुत्र अविवाहित माता के द्वारा दासी की सहायता से समाज के भय से अश्व नदी में बहा दिया गया और बहता हुआ वह शिशु सुत अधिरथ को मिला।किन्तु था तो वह सूर्यपुत्र ही। हां वही सूर्यपुत्र!ज्येष्ठ पाण्डव!हस्तिनापुर का भावी सम्राट!