Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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गीता में पर्यावरण का अवलोकन
1 Author(s): DR. ANIL KUMAR YADAV
Vol - 12, Issue- 8 , Page(s) : 59 - 61 (2021 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार प्रकृति एवं पुरूष के संयोग से जीवन विकसित हुआ। प्रकृति को माँ एवं पुरूष को पिता माना गया है। संतानोंत्पति में पिता का योग तो होता है कि किन्तु उसे गर्भ में एंव बाद में भी पालने का कार्य माँ अर्थात् प्रकृति करती है। इस कारण प्राणी जगत् चर-अचर सभी की माँ पृथ्वी है। पृथ्वी पर मानव, पशु-पक्षी, पेड़ पौधे एंव अन्य सभी जीव-जन्तु एक ऐसे प्रकृति प्रदत चक्र से बंधे हुये है।