Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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समाज को नई दिशा देती व्यंग्य विधाएं

    1 Author(s):  SANTOSH

Vol -  5, Issue- 2 ,         Page(s) : 97 - 106  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

व्यंग्यकार अपनी प्रतिमा से व्यंग्य गढ़ता है, लेकिन उसकी कलम जान-बुझकर उन्हीं स्थितियों पर उठती है। जिनके केन्द्र में पीड़ा, शोषण, विकृति और अनाचार है। प्रतिमा कल्पना के सहारे एक मनोरंजधर्मी व्यंग्य तैयार किया जा सकता है, लेकिन ऐसे व्यंग्य में सत्यान्वेषी तल्खी और अनुभव सिद्ध संवेदनात्मक तीव्रता नहीं होगी। व्यंग्कार की प्रखर संवेदनषीलता समूह के दिमाग को खोलने और हृदय को फैलाने का काम एक साथ करती है, इसलिए व्यंग्यकार को भावुक नहीं संवेदनषील बनना पड़ता है। उसका मूल लक्ष्य उत्तेजित करना है, कुठाराघात द्वारा आँखें खोलना है। व्यंग्य की विराटता और पौरूष ने लगातार आषवस्त किया है।

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  1.  नई कहानियाँ मार्च 69, पृ0 117। 
  2.  डाॅ0 छविनाथ मिश्रः आधुनिक व्यंग्य का स्त्रोत और स्वरूप, पृ0 11
  3.  ब्रजरत्नदास (सम्पादित)ः भारतेन्दु ग्रन्थावली भाग- 3 पृ0 858
  4.  हरिषंकर परसाई: अपनी-अपनी बीमारी, पृ0 76 
  5.  तुलसी दास: रामचरित मानस पृ0 2/294
  6.  आर्थर पोलार्ड: संटायर, पृ0 57
  7.  डाॅ0 भोलानाथ तिवारीः शैली- विज्ञान, पृ041
  8.  नीरज व्यास: मामला हाथी की पूँछ खींचने का पृ0 91।
  9.  रामचन्द्र वर्मा: मानक हिन्दी कोष (1966)
  10.  नीरज व्यासः साहित्य सम्मेलन बैल-बाजार है, पृ0 76
  11.   नीरज व्यासः कांगेस की चिंता और मेरा चिंतन, पृ0 44

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