Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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स्वामी विवेकानंद के विचारों की प्रासंगिकता

    1 Author(s):  DR. VINITA AWASTHI

Vol -  5, Issue- 3 ,         Page(s) : 58 - 62  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

आज जहंाॅं सम्पूर्ण विष्व साम्प्रदायिकता ,आतंकवाद,जातिवाद एवं विघटनकारी शक्तियों के कारण त्रस्त हैं। इससे उबरने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। ऐसी दषा में स्वामी विवेकानंद का संदेश मूल्यविहीन और दिग्भ्रमित लोगों के लिए प्रेरणा बन सकता है। वर्षों पहले सन् 1893 ई. में षिकागो में जो धर्म सभा हुई थी वही विष्व धर्म परिषद थी। वहाॅं एक मात्र स्वामीजी ही भारतीय संस्कृति एवं धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। भूतकाल में स्वामी विवेकानंद ने जिस नव चेतना का संचार किया वह वर्तमान में उतना ही सार्थक है।

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1-विवेकानंद साहित्य-अद्वैत आश्रम ,कलकत्ता।
2-एकनाथ रानाडे, ‘‘सेवा ही साधना ’’ ,विवेकानंद केन्द्र प्रकाशन ।
3-एकनाथ रानाडे, उत्तिष्ठता ! जाग्रत ’’। विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी ।
4-गुप्त राजेन्द्र प्रकाश -स्वामी विवेकानंद व्यक्ति और विचार ,राधा पब्लिकेशन, दिल्ली 1977 
5-विवेकानंद साहित्य संचयन-प्रकाशक स्वामी व्योमरूपानंद अध्यक्ष रामकृष्ण मठ,धन्तोली,नागपुर
6-विकेकानंद साहित्य खण्ड -1-10 अद्वैत आश्रम कलकत्ता ।

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