Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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‘छिन्नमस्ता’ उपन्यास में नारी यातना व चेतना के स्वर
1 Author(s): DR. DEEPAK KUMARI
Vol - 5, Issue- 9 , Page(s) : 14 - 19 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
‘छिन्नमस्ता’ उपन्यास नारी-अस्मिता के संघर्ष से भरा हुआ है। इस उपन्यास में अस्मिता के नाम पर नारी को पग-पग पर यथार्थ के थपेडे़ खाने पड़ते हैं, कहीं औरत का अपने शोषण के प्रति एकतरफा चुप्पी भरा समर्पण है तो कहीं उसकी सिसकियाँ उसके दुःख को स्वर दे रही हैं। ‘छिन्नमस्ता’ उपन्यास के किसी भी नारी-पात्र को जरा-सा भी कुरेदो दर्द व यातना से छटपटाता हुआ नजर आता है। प्रिया की दोस्त जुड़ी कहती है- ”औरत का दर्द समझती हूँ। प्रिया, क्या केवल तुम्हीं ने सहा है? एक तुम ही नहीं जो दुःख पा रही हो, हर औरत के अपने-अपने दर्द के तहखाने हैं।“1 नारी अपनी परम साहसिकता के उपरान्त भी यौन-शोषण का शिकार हो रही हैं और आँकड़े चैंकाने वाले हैं। दूर जाने की जरूरत नहीं, वह अपने ही घर में अपने भाई-बाप द्वारा छली जा रही है।