Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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समाज को नई दिशा देती व्यंग्य विधाए
1 Author(s): ANJALI RANI
Vol - 5, Issue- 12 , Page(s) : 5 - 12 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
व्यंग्यकार अपनी प्रतिमा से व्यंग्य गढ़ता है, लेकिन उसकी कलम जान-बुझकर उन्हीं स्थितियों पर उठती है। जिनके केन्द्र में पीड़ा, शोषण, विकृति और अनाचार है। प्रतिमा कल्पना के सहारे एक मनोरंजधर्मी व्यंग्य तैयार किया जा सकता है, लेकिन ऐसे व्यंग्य में सत्यान्वेषी तल्खी और अनुभव सिद्ध संवेदनात्मक तीव्रता नहीं होगी। व्यंग्कार की प्रखर संवेदनषीलता समूह के दिमाग को खोलने और हृदय को फैलाने का काम एक साथ करती है, इसलिए व्यंग्यकार को भावुक नहीं संवेदनषील बनना पड़ता है। उसका मूल लक्ष्य उत्तेजित करना है, कुठाराघात द्वारा आँखें खोलना है। व्यंग्य की विराटता और पौरूष ने लगातार आषवस्त किया है। सच्चे और सार्थक व्यंग्य की यह ताकत होती है कि वह मूल्यों की आपाधापी और संक्रान्ति का चित्र ही नहीं देता, नए मूल्यों की तलाष और उनकी ओर इषारा भी करता है। न केवल इसने लोक दावपेच को समझने की नई दृष्टि और व्यवहार की कुषलता ही दी है, अपितु वस्तु- स्थिति की प्रखर और सुक्ष्मतम अनुभूति द्वारा जीवन को नई दिषा भी दी है।