Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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त्रिलोचन की काव्य भाषा

    1 Author(s):  DR. ANJALI SINGH

Vol -  5, Issue- 12 ,         Page(s) : 26 - 31  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

त्रिलोचन हिंदी के महान स्तंभ थे। वे उन लोगों में से थे जो हिंदी की विशाल इमारत की नींव में स्थित है। काशीनाथ सिंह ने उनका जो शब्द-चित्र खींचा है वह बिल्कुल उचित प्रतीत होता है ’’कालातीत हैं त्रिलोचन’’, कोई सदी नहीं - कोई स्थान नहीं, कोई भाषा नहीं, जहाॅ और जिसमें न घूमा हो त्रिलोचन। उनके अनूठे व्यक्तित्व को गढ़ने में उनकी ज्ञान-पिपासा और स्वाध्याय का बहुत बड़ा हाथ है। उर्दू, बंगला, संस्कृत, अंग्रेजी अवधी और फारसी के गहन अध्ययन ने उनके साधारण शब्दों के भीतर गहन संवेदना भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आदि काल से लेकर प्रतीकवाद और प्रयोगवाद पर उनका अधिकार अद्भुत था - ’’तुलसी बाबा भाषा मैंने तुमसे सीखी। मेरी सहज चेतना में तुम रमे हुए हो’’ यह उद्घोषणा करने वाले त्रिलोचन की शिराओ में तुलसी, निराला और कबीर दौड़ रहे है तो उनकी धमनियों में मीर, गालिब, और नजीर भी प्रवाहित है।

1. त्रिलोचन की काव्य-दृष्टि डाॅ0 लता शिरोड़कर विद्या प्रकाशन कानपुर 2014।
2. प्रतिनिधि कविताएॅ- त्रिलोचन लोक भारती प्रकाशन इलाहाबाद 2013-14।
3. त्रिलोचन का काव्य-लोक प्रताप सिंह विश्वभारती पब्लिकेशन नई दिल्ली 2011।
4. प्रतिनिधि कविताएॅ संपा. - केदारनाथ सिंह राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली 1985।
5. साक्षात् - त्रिलोचन संपादक-कमलाकांत द्विवेदी सिद्वार्थ प्रकाशन-नई दिल्ली 1990।
6. त्रिलोचन के बारे में संपा.-गोविंद प्रसाद वाणी प्रकाशन नई दिल्ली 1994।
7. त्रिलोचन-संचियता सं.-ध्र्रुव शुक्ल हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा 2002।

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