Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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डाॅ. सुमन राजे और उनका व्यक्तित्व

    1 Author(s):  DR. SUDHA MISHRA

Vol -  5, Issue- 10 ,         Page(s) : 11 - 15  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

मानव का समस्त ज्ञान अनुभवों का परिणाम है। अतः काल्पनिक चिन्तन की अपेक्षा वास्तविक व्यवहार का अध्ययन मानसिक समस्याओं के समाधान में अधिक सहायक होता हैं। मनुष्य का प्रकट अनुभव शारीरिक व्यवहार और अप्रकट अनुभव मानसिक अनुभव कहा जा सकता है। मानव वही कर सकता है जिसके वह योग्य है। योग्यता के साथ-साथ वाह्य परिस्थितियों का भी महŸव है। अतः हमारी शारीरिक तथा मानसिक योग्यता एंव क्षमता के साथ-साथ व्यक्तित्व के विकास में वातावरण का भी महत्वपूर्ण स्थान है। मानव का मौलिक गुण है - सूक्ष्म चिन्तन एवं बौद्धिक क्षमता, यही गुण उसे दूसरे जीवों से भिन्न करता है। बचपन में विभिन्न परिस्थितियों में जिस प्रकार की प्रतिक्रिया करना हम सीखते हैं वही प्रतिक्रियाएँ हमारे पौढ़ सामाजिक जीवन की दशा निर्धारित करती हैं। मनोवैज्ञानिक भाषा में प्रतिक्रिया और दृष्टिकाण अर्जित होते है, जिसमें जीवन शैली, नैतिक मान्यताएँ, विचाराधारा, साहित्य, भाषा, चिन्तन तथा वातावरण आदि निहित हैं। मनुष्य का तृतीयांश प्रभाव व्यकित्त्व का ही होता है। जिसे वैयक्तिक आकर्षण कहा जा सकता है और शेष तृतीयांश होता है, मनुष्य की बुद्धि और उसके कहे हुए शब्द। कर्म व्यक्तित्व की वाह्य अभिव्यक्ति है। शिक्षा का ध्येय भी मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना ही है जिससे वह दूसरों को प्रभावित करता है।

1डा. वी.एन. सिंह मुलाकात के दौरान पूछे गये प्रश्न पर आधरित।
2डा. सुमन राजे से मुलाकात के दौरान पूछे गये प्रश्न पर आधरित।
3डा. वी.एन. सिंह, सम्पादक - प्रतिर्शीषक-टुकडों में कुछ यादें।
4डा. वी.एन. सिंह, (सम्पादक - प्रतिर्शीषक), प्रकाशित साक्षत्कार के कुछ अंश।
 

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