Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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हिन्दी साहित्य में साम्प्रदायिकता एवं प्रभाव
1 Author(s): RAKESH KUMAR PRACHTA
Vol - 6, Issue- 1 , Page(s) : 8 - 13 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
भारत देश में साम्प्रदायिकता का बीज भारतीय मानस के अन्दर अंग्रेजों ने उसी समय बोया, जिस समय उन्होंने भारत का बंटवारा कर पाकिस्तान को अलग किया था। ऐसी स्थिति में कुछ ही दिनों में इस बीज का पौधा फलने-फूलने लगा और साम्प्रदायिकता के कडुए फल भी देने लगा। आज पूरा भारतवर्ष साम्प्रदायिकता ग्रस्त दिखाई देता है। इसी सन्दर्भ में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कला संकाय के डीन एवं हिन्दी विभाग के भूतपूर्व डाॅ0 के0पी0 सिंह राही मासूम रजा के उपन्यास ‘आधा गाँव’ की भूमिका में लिखते है कि ‘‘साम्प्रदायिकता आज देश के लिए भयानक चुनौती बन कर सामने है। साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकता और अखण्डता के लिए विष बेल की तरह है जिसका जहर धीरे-धीरे हमारे बुद्धिजीवियों में प्रवेश कर रहा है।’’ इसका मुख्य कारण यह है कि ‘‘विभिन्न मतों के ठेकेदारों, पंडितों मुल्लाओं और ज्ञानी संतों ने धर्म के बाह्य स्वरूप, उसके कर्मकाण्ड और उसकी औपचारिकता को प्रधानता दे डाली किन्तु उनके आधारभूत तत्वों की एकता पर जोर नहीं दिया।’’