Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक के हिंदी-नाटकों में पति-पत्नी के संबंधो में विघटन

    1 Author(s):  DR. KULDEEP SINGH

Vol -  6, Issue- 1 ,         Page(s) : 14 - 24  (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

पारिवारिक विघटनः स्वतंत्रता- प्राप्ति के पश्चात् ही अथवा हम यह कह सकते हैं कि छठे दशक तक आते-आते पारिवारिक विघटन आरंभ हो गया था। नगरों में सामूहिक परिवारांे का ढाँचा चरमराने लगा था और बीसवीं शती के अंतिम दशक तक पहुँचाते-पहुँचतें सामूहिक परिवार न के बराबर रहे गये। नगरों और विशेषकर महानगरों के पारिवारिक विघटन की स्थिति तो यह हो गयी कि इकाई परिवारों में भी विघटन आरंभ हो गया। पति-पत्नी के संबंधांे में ही तनाव आने लगा तो पिता-पुत्र, भाई-भाई, सास-बहू, भाई-बहन आदि के संबंधो का तो अनिवार्य शर्त बन ही जाती थी। अब हम बीसवीं शती के अंतिम दशक के नाटकों में चित्रित नगरीय जीवन के पारिवारिक संबंधों के विघटन की स्थिति की बिंदुवार समीक्षा करेंगे।

1. मृदुलाबिहारी, प्यार, सूर्यास्त के पहले तथा अन्य नाटक, पृष्ठ 131
2. वायरस, राजेश जैन, पृ040
3. वायरस, राजेश जैन, पृ041-42
4. वायरस, राजेश जैन, पृ0 43
5. वायरस, राजेश जैन, पृ0 55
6. चिमटे वाला बाबा, ललितमोहन थपलयाल, पृ042
7. मिचटे वाला बाब, ललितमोहन थपलयाल, पृ043-44
8. संवादों के पीछे, मनोज कैन, पृ0-61-62
9. संदल सांझ, सूर्यास्त के पहले तथा अन्य नाटक, पृ0145-146
10. संदल सांझ, सूर्यास्ते पहले तथा अन्य नाटक,150-151
11. संदल सांझ, सूर्यास्त के पहले तथा अन्य नाटक, पृ0 153
12. संदल सांझ, सूर्यास्त के पहले तथा अन्य नाटक पृ0 156-157

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