Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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कवि रवीन्द्र कुमार पण्डा विरचित ‘तृष्णाषतकम्’ काव्य में लिखित श्लोकों का अनुवाद।
2 Author(s): PROF. HEMLATA BOLIYA , BANWARI LAL MEENA
Vol - 6, Issue- 2 , Page(s) : 17 - 39 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
हे देवदेव प्रणमामि शम्भो शुभाय नित्यं तव पादपùौ। दयावतारोऽसि सुखाकरोऽसि त्वं दीनबन्धुः करूणासमुद्रः।।1।। अनुवाद:- हे देवो के देव देवाधिदेव शम्भू। मैं कल्याण हेतु नित्य तुम्हारे चरण-कमलों की वन्दना करता हूँ। हे देव! आप दया के अवतार, सुख के आकर, दीनबन्धु तथा करूणा के साक्षात् सागर ही हो।