Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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न्याय दर्षन में प्रत्यक्षवाद
1 Author(s): PRIYANKA KHANDELWAL
Vol - 6, Issue- 9 , Page(s) : 3 - 8 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
सम्यक् दर्षनसम्पन्नः कर्मभिर्न निबद्धयते । दर्षनेन विहीनस्तु संसारं प्रतिपाद्यते ।।1 मनुस्मृति का यह कथन भारतीय दर्षन का मूल भाव प्रकट करता है कि ‘‘सम्यक् दर्षन प्राप्त होने पर कर्म मनुष्य को बंधन में डाल नहीं सकते जिनको यह सम्यक् दृष्टि प्राप्त नहीं है, वे ही संसार के जाल में फॅंस जाते हैं ।‘‘