Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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विकलांग बालक
1 Author(s): SUSHEEL KUMAR
Vol - 3, Issue- 2 , Page(s) : 49 - 53 (2012 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
शिक्षा व्यक्ति के सर्वागीण विकास, सामाजिक और राष्ट्रीय प्रगति तथा सभ्यता और संस्कृति के विकास के लिये अनिवार्य है। आज मनुष्य जो सभ्यता और संस्कृति के सर्वोच्च शिखर पर सुशोभित हो रहा है उसका मूल आधार शिक्षा ही है। शिक्षा न केवल प्रचलित सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों को सुरक्षित रखती है साथ ही साथ नये मूल्यों को विकसित करती है तथा विचारों एवं संस्थाओं के रूप में नयी शक्तियों को पैदा करती है। जिसमें सामाजिक संरचना में परिवर्तन लाने की क्षमता होती है। शिक्षा बड़े स्तर पर सामाजिक परिवर्तन हेतु एक और एकमात्र अभिकरण है (कोठारी आयोग 1964-66)। शिक्षा किसी समाज के उध्र्वगामी विकास का सबसे महत्वपूर्ण कारक है, समाज का विकास उसमें निहित सम्पूर्ण मानवीय क्षमता का कुशलतापूर्वक उपयोग पर निर्भर करता है समाज में सभी नागरिकों के सहयोग के बिना पूर्ण विकास सम्भव नहीं हो सकता है।