Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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अनुभूति की प्रामाणिकता एवं रचना/अनुवाद का मूल तर्क

    1 Author(s):  DR. TRIPTI SRIVASTAVA

Vol -  7, Issue- 5 ,         Page(s) : 13 - 18  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

मोटे तौर पर लगभग पांच दशकों से हिंदी साहित्य में केंद्र से परिधि और पुनः परिधि से केंद्र पर धकेले जाने वाले मुद्दों में से ही एक मुद्दा प्रामाणिक अनुभूति और भोगे हुए यथार्थ का है। नई कविता के साथ बहस के केंद्र में आया यह मुद्दा नई कहानी से होते हुए एक लंबे समय तक हिंदी साहित्य के नामवर आलोचकों के बीच वाद-विवाद-संवाद का कारण बना रहा तब तक जब तक कि नामवर सिंह ने आलोचना-39 के संपादकीय में यह उद्घोषणा नहीं कर दी

  1. आलोचनाए जुलाई.सितंबरए 1967ए संपादकीयए नामवर सिंह
  2. आलोचना के नए मानए  कर्णसिंह चौहानए स्वराज प्रकाशनए दिल्लीए संस्करण 2001ए पृण् 108 
  3.  दलित साहित्य की अवधारणाए कंवल भारतीए बोधिसत्व प्रकाशनए प्रथम संस्करण 2008ए पृण् 16
  4. वहीए पृण् 15
  5.  वसुधा ष् 58ए जुलाई.सितंबर 2003ए पृण् 306
  6. वही पृण् 297
  7. दलित साहित्य की अवधारणाए कंवल भारतीए बोधिसत्व प्रकाशनए प्रथम संस्करण 2008ए पृण् 16
  8. इतिहास और आलोचनाए नामवर सिंहए राजकमल प्रकाशनए तीसरा संण् 1978ए तृतीय आवृत्ति 2006ए पृण् 53
  9.  देखेंए पाश्चात्य काव्य शास्त्रए देवेन्द्र नाथ शर्माए मयूर पेपर बैक्सए नोएडाए नवां संण् 2006ए पृण् 125.146

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