Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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ऋग्वेद- एक अध्ययन

    1 Author(s):  SANJAY CHAUDHARI

Vol -  3, Issue- 2 ,         Page(s) : 54 - 58  (2012 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

सारांशः ऋग्वेद मे उल्लेखित कई तथ्यों पर समुचित प्रकाश नहीं डाला गया है। इनमें आर्य-अनार्य विवाद के कुछ पक्ष जैसे किसने किस पर आक्रमण किया और आक्रमण करने के क्या कारण रहे, प्रमुख है। आर्यजनों के अनार्यों पर आक्रमण के ही साक्ष्य प्राप्त होते हैं। जिनका कारण अनार्यों के प्रचुर संसाधन हो सकता है। आर्यजन, अनार्यों के इन प्रचुर संसाधनों पर अधिकार करने के लिए आर्यों पर आक्रमण करने को विवश हुए होंगे। किन्तु कलांतर में अनार्य अपने तकनीकि गुणों के कारण आर्यजनों के साथ निवास करने लगे थे। ‘राजन’ तथा ‘राजा’, शब्दों में अंतर है जो उनके अधिकार क्षेत्र से प्रदर्शित होता है। बाद के कालों में इसका प्रभाव राजनैतिक परिस्थितियों में भी प्रदर्शित होता है। संसाधनों में वृद्वि से राजाओं में विलासिता देखी जा सकती है तथा राज्यों के प्रशासन व्यवस्था में अनार्य संस्कृति का भी प्रभाव देखने को मिलता है। प्रस्तुत शोधप्रबंध में इन्हीं बातों पर चर्चा की गई है।

1. बर्रो टी., द अर्ली आर्यन्स, ए कल्चरल हिस्ट्री आव इंडिया, संकलन-ए.एल.बाशम, आक्सफर्ड, 1975, पृष्ठः 20। डी.एन.झा, प्राचीन भारत, ग्रंथशिल्पी, दिल्ली, 2003, पृष्ठः 44।
2. ऋग्वेद, नदी स्तुति, 10.75।
3. रा. कु. मुखर्जी, प्राचीन भारत, राजकमल, दिल्ली, 2009, पृष्ठः 26।
4. बर्रो टी., द अर्ली आर्यन्स, ए कल्चरल हिस्ट्री आव इंडिया, संकलन-ए.एल.बाशम, आक्सफर्ड, 1975, पृष्ठः 27।
5. रा. कु. मुखर्जी, प्राचीन भारत, राजकमल, दिल्ली, 2009, पृष्ठः 27। ऋग्वेद, 1.37.8।
6. ऋग्वेद, 3.43.5।
7. डी.एन.झा, प्राचीन भारत, ग्रंथशिल्पी, दिल्ली, 2003, पृष्ठः 49-50।
8. वही, पृष्ठः 48।
9. राजसूय यज्ञ के अनुष्ठान के समय राजा को पुरन्भेŸाा कहा गया है।
10. डी.एन.झा, प्राचीन भारत, ग्रंथशिल्पी, दिल्ली, 2003, पृष्ठः 46।
11. रा. कु. मुखर्जी, प्राचीन भारत, राजकमल, दिल्ली, 2009, पृष्ठः 27।
12. वैदिक इंडेक्स, मैक्डानल एवं कीथ, खण्ड दो, पृष्ठः 200।
13. ऋग्वेद, 10.97.11।

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