Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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भारत में राजनीतिक विकास के आरंभिक परिदृश्य

    1 Author(s):  SANJAY CHAUDHARI

Vol -  2, Issue- 2 ,         Page(s) : 40 - 44  (2011 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

सरांशः सामान्य तौर पर कुछ विद्वान वैदिक काल को दो भागों में विभक्त किया जाता है। उत्तर भाग को उत्तर वैदिक काल कहा जाता है। इसको 1000 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व के मध्य का काल माना जाता है। इस काल मे राजनैतिक संस्थाओं का विकास महत्वपूर्ण रहा। राजनैतिक संस्थाओं को स्वरूप प्रदान करने के लिए चिंतकों द्वारा चिंतन किया गया जो तीन वेद, ब्रह्मण, संहिताओं तथा उपनिषदों के साहित्य में प्रतिबिंबित होता है। राजनैतिक संस्थाओं के विकास में आर्य प्रभाव के साथ साथ अनार्य प्रभाव भी प्रदर्शित होता है। इसका लघु अध्ययन इस प्रबंध में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। शोधार्थियों के लिए इस दिशा में काम करने की भरपूर संभावनाऐं है। राजनैतिक संस्थाओं की प्रकृति के अध्ययन में हम पाते हैं कि राजतंत्रीय गुणों के साथा साथ प्रजातांत्रिक गुणों को भी महत्व दिया गया। ऐसा मिश्रित प्रजा होने के कारण विवशता बना। किन्तु बाद के कालों में राजतंत्रीय व्यवस्था को ही लागू करने की दिशा में प्रयास किया गया। प्रस्तुत प्रबंध में कुछ ऐसे ही प्रश्नों पर विचार किया गया है।

1. झा डी.एन., प्राचीन भारत, ग्रंथशिल्पी, दिल्ली, 2003, पृष्ठः54।
2. कट्ठक संहिता, 14.5; मैत्रायणी संहिता, 1.2.5; तैतिरीय ब्राह्मण, 1.3.2.2।
3. ऐतिरीय ब्राह्मण, 7.12.14.7; वैदिक इंडेक्स, द्वितीय खण्ड, पृष्ठः 112।
4. ऐतिरीय ब्राह्मण, 8.12.4.5; सांख्यायन श्रौत सूत्र, 12.16.3।
5. सतपथ ब्राह्मण, 5.1.1.12; वैदिक इंडेक्स, द्वितीय खण्ड, पृष्ठः 220।
6. छंदोग्य उपनिषद, 4.1.1; 4.2.1।
7. ऐतिरीय ब्राह्मण, 8.21.12; सतपथ ब्राह्मण, 13.5.4.6।
8. रायचैधुरी हे.च., पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐन्सियंट इंडिया, कलकŸाा विश्वविद्यालय, कलकŸाा, 1973, पृष्ठः 143।
9. सतपथ ब्राह्मण, 6.5.3.1, 7.5.1.6।
10. रायचैधुरी हे.च., पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐन्सियंट इंडिया, कलकŸाा विश्वविद्यालय, कलकŸाा, 1973, पृष्ठः 155।
11. वैदिक इंडेक्स, मैक्डानल तथा कीथ, द्वितीय खण्ड, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1982, पृष्ठः 200।
12. रायचैधुरी हे.च., पोलिटिकल हिस्ट्री आव ऐन्सियंट इंडिया, कलकŸाा विश्वविद्यालय, कलकŸाा, 1973, पृष्ठः 150-151।

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