Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 522    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

आगम-तंत्र परम्परा और वेद:एक विश्लेषण

    1 Author(s):  DR. KANCHANMALA PANDIT

Vol -  2, Issue- 1 ,         Page(s) : 55 - 62  (2011 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

यह सर्वज्ञात तथ्य है कि आगम-परम्परा और निगम-भिन्न परम्परा है। आगम परम्परा की विचारधारानिगम-परम्परा के समानान्तर ही भारतवर्ष में अपनी न्यूनाधिक विशेषताओं के साथ चलती आई है। यद्यपिभ्रान्तिवश विद्वज्जन भी आगम-तन्त्र की धरा को पश्चाद्वर्ती मान लते हैं। यह भ्रान्ति वस्तुतः अज्ञानतावश है।भारत के प्राचीनतम् वाघ्मय वेद हैं, उनके समग्र पर ध्यान दें तो यह धारा निगम (वेद) के समानान्तरसूत्र-संकेत रूप में ही सही, निश्चय ही, विद्यमान रही है बल्कि आगम-तन्त्र के कतिपय तत्व तो पुरा-वैदिकसिद्ध हो सकते हैं। हाँ, अथर्वाङ्रिस-परम्परा अथवा भृग्वाङ्गिरा-परम्परा अर्थात् अथर्ववेद के अनेक सांस्कृतिकसूत्र प्राक् ऋग्वेदीय भी हो सकते हैं।1 आगम-तन्त्र की महत्ता का संकेत मात्र इस बात से ही मिल जाता है कि एक तरफ इस अति पुरातनपरम्परा के लक्षण सुदूर अतीत काल से ही भारत से इसकी सीमा के बाहर अनेक देशों में फैलते रहे ओरमनीषियों के बीच संवाद, चिन्तन व प्रयोग के आधर बने तो आध्ुनिक युग में उन्नीसवीं शताब्दी से हीआगम-तन्त्र पर न केवल भारतीय विद्वान् अपितु पाश्चात्य मनीषी आकृष्ट हुए। भारत में तो इस ध्ाारा की महिमाकतिपय ऐसी विभूतियों द्वारा व्यक्त की गयी, जिनकी मनीषा स्थूल भौतिक ज्ञान से ऊपर परम् आध्यात्मिक भावसे अनुप्राणित थी। महामहोपाध्याय डाॅ0 गोपीनाथ कविराज एक ऐसे ही सिद्धसाधक मनीषी थे। कविराज जी काकृतित्व आगम-तन्त्र-ज्ञान के सैद्धान्तिक विमर्श के लिए तो उपादेय है ही, उनकी स्वयं की सतत् साधना केविम्ब भी उनकी अभिव्यत्तिफ में अनुस्यूत हैं। इस महती परम्परा को हृदयघ्गम करने के लिए अन्ततः एक आधरअप्रतिम मनीषी ने भी दिया है कि इस धरा में गुरु का स्थान सर्वोपरि है-

1. द्रष्टव्य, पाठक, विश्वम्भरशरण - ऐंसिएण्ट हिस्टोरिएन्स आॅफ इण्डिया, एशिया पब्लिसिंग हाउस, बम्बई, 
1966; शर्मा,गोवधर््ान राय-भारतीय संस्कृति: पुरातात्त्विक आधार, नेशनल पब्लिशिंग, नई दिल्ली, 1985 ; तथा विस्तार के लिए द्र0 त्रिपाठी,माता प्रसाद: कोशल-मगध-क्षेत्र के पुरावैदिक सूत्र (विशेष व्याख्यान)-भारतीय इतिहास-लेखन समस्यायें एवं परिप्रेक्ष्य, सं0अजय कुमार पाण्डेय, 2004
2. महामहोपाध्याय डाॅ0 गोपीनाथ कविराज का समग्र कृतित्त्व ही पठनीय है-विशेषतः द्रष्टव्यः तांत्रिक वाघ्मय में शाक्तदृष्टि तथा भारतीय संस्कृति और साधना(दो भागों में)-सभी बिहार राष्ट्रभाषा प्रकाशन, पटना से प्रकाशित।
3.विस्तार के लिए द्रष्टव्य, सर जाॅन ऊड्रफ: शक्ति एण्ड शाक्त, मद्रास (पाँचवाँ संस्करण), 1959
4. ऊड्रफ, तत्रैव, पृ0 490
5.  तत्रैव, पृ0 490 एवं आगे।
6. तत्रैव, पृ0 131
7. गोभिल गृह्मसूत्र 1.2.5, तैत्तिरीय आरण्यक-प्प्ण्11य महानिर्वाण तन्त्र, अध्याय-5 ;
8. ऐतरेय आरण्यक, प्प्ण्2ण्1ण्2यप्प्2ण्5ण्2;ऋग्विधन ब्राह्मण-प्प्ण्16य
9. ऋग्वेद .प्प्प्ण्62ण्10य
10.  तैत्तिरीय आरण्यक प्टण्27य शतपथ ब्राह्मण प्ण्5ण्2ण्.18य प्ण्3ण्3ण्14य प्7ण्2ण्11.14य प्ण्7ण्2ण्21य 
ग्प्ण्2ण्2ण्3 एवं 5; महानिर्वाण तन्त्र, अध्याय-3; अन्य प्रयोजनों के लिए द्रष्टव्य ऐतरेय ब्राह्मण प्प्ण्3ण्6य
तथा प्प्ण्5ण्5
11. त्रिपाठी, माता प्रसाद: ऋग्वेद में शक्ति: विविध रूपों में प्रसार-अभिव्यक्ति ऋतावरी, अंक-4 (2003द्ध, 
गोरखपुरपृ0-1-13
12.  ऊड्रफ के ग्रन्थ ‘शक्ति एण्ड शाक्त’ का चैबीसवाँ अध्याय, शक्ति एज मंत्र’ के विश्लेषण हेतु ‘मंत्रमयी 
शक्ति रूप मेंउद्घाटित है।
13.  लाट्यायन श्रौतसूत्र, 5.4.11; कात्यायन श्रौतसूत्र, 19.1 शांखायन श्रौतसूत्र- 15.15; 24.13.4;
     शतपथ ब्राह्मण-5.1.2.12; 5.1.5.28; 12.7.3.14 इत्यादि। आपस्तम्ब श्रौतसूत्र-18.1.9
14. द्रष्टव्य, उपाध्याय, आचार्य बलदेव- बौद्व-दर्शन-मीमांसा, पृ0-315-317, चैखम्बा, वाराणसी, 1970
15.  ऊड्रफ, तत्रैवपृ098 एवं आगे।
16. शतपथ ब्राह्मण-ग्प्.6.2.10 ; शतपथ ब्राह्माण के कतिपय अन्य सन्दर्भ भी द्रष्टव्य है। यथा-प्प्प्.2.1.2 
आदि।
17. शतपथ ब्राह्मण, टप्.5.3.5
18. ऐतरेय ब्राह्मण, प्प्.5.3;
19. तत्रैव , प्प्प्.5.4;
20. तत्रैव, ट.3.1;
21. शाखायन श्रौतसूत्र, ग्प्प्ण्24ण्1.10य अथर्ववेद, ग्ग्ण्136य ऐतरेय ब्राह्मण, टप्प्ण् 2.9य
22. विस्तार के लिए द्रष्टव्य, शक्ति एण्ड शाक्त, पृ0-100
23. उपाध्याय, बलदेव, वही
24. तत्रैव।
25. तत्रैव।
26. तत्रैव उद्वृत।
27. पाठक, विश्वम्भरशरण- ब्राह्मण समाजः एक ऐतिहासिक अनुशीलन (लेखक-देवेन्द्रनाथ शुक्ल) की 
भूमिका।

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details