Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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हिन्दी की साठोत्तरी महिला उपन्यास लेखिकाएँ और नारी विमर्श।

    1 Author(s):  SUNITA

Vol -  1, Issue- 1 ,         Page(s) : 36 - 38  (2010 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

स्वातन्त्रयोत्तर काल खण्ड में जीवन-मूल्यों में व्यापक परिवर्तन हुआ। महिला उपन्यासकारों के उपन्यास में यह परिवर्तन प्रखरता से प्राप्त होता हे। परम्परागत जीवन मूल्य एंव आधुनिक जीवन मूल्य के बीच संघर्षरत नारी की मानसिकता का चित्रण इन उपन्यासों का प्रमुख विषय रहा हैं साथ ही सामाजिक, धार्मिक, मानसिक, पारिवारिक एंव शारीरिक धरातल पर नारी का जो शोषण हो रहा है तथा आज की नारी इस शोषण से अपने आप को मुक्त करने के लिए जो प्रयास कर रही है, उसे साठोत्तरी महिला उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों का विषय बनाया है। कामकाजी नारी की समस्याओं, स्त्री पुरूषों के बदलते सम्बन्धों, स्त्री की तनावग्रस्त मानसिकता एंव मुक्ति की कामना की साठोत्तरी महिला उपन्यासकारों ने बड़ी सूक्ष्मता के साथ अंकित किया है।

  1. कुसुम अंसल, अपनी-अपनी यात्रा (दिल्ली, सरस्वती प्रकाशन 1981 पृ0 114
  2. वैशाली पेशपांडे, स्त्रीवाद और महिला उपन्यासकार (कानपुर, विश्व बैंक बर्रा प्रकाशन, 2007) पृ0 721
  3. उषा यादव, हिन्दी की महिला उपन्यासकारों की मानवीय संवेदना (दिल्ली, 
  4. राधाकृष्ण प्रकाशन, 1994) प्र0 82
  5. अमर ज्योति, महिला उपन्यासकारों के उपन्यासों में नारीवादी दृष्टि (कानपूर, अन्नपूर्ण प्रकाशन, 2008) प्र0 61 

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