Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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हिन्दी के आंचलिक उपन्यासों में सांस्कृतिक मूल्य संसृति

    1 Author(s):  DR. RAJINDER SINGH

Vol -  7, Issue- 11 ,         Page(s) : 13 - 19  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

महŸवपूर्ण प्राप्तियों का नाम है जो सहस्रों वर्षां से निरन्तर परिशोधित, परिष्कृत और प्रतिष्ठित होकर हमारे समक्ष प्रस्तुत होते हैं। किसी भी देश, राष्टन्न् अथवा समाज को संस्कृति ही गरिमापूर्ण बनाती है। भारतीय संस्कृति विश्व की सभी संस्कृतियों में विशिष्ट स्थान रखती है। यदि हम कहें कि यह सर्वोत्कृष्ट है तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। flसा प्रथमा संस्कृति- विश्ववाराfi यजुर्वेद की यह सूक्ति भारतीय संस्कृति सबसे पहले की है अर्थात् इससे पहल और कोई संस्कृति थी ही नहीं। यह ‘विश्ववारा’ अर्थात् समस्त संसार द्वारा वरण करने योग्य है।fi 1 संस्कृति में समाज के आन्तरिक तŸव निहित होते हैं। जिस प्रकार आत्मा से शरीर का विवेचन तथा उसके गुणों का वर्णन किया जाता है उसी प्रकार मूल्यों से हम किसी संस्कृति की आन्तरिक शक्ति एवं सŸा का अध्ययन करते हैं।

1. डाॅ. पूर्णचन्द शर्मा, संस्कृति के स्तम्भ, पृष्ठ. 11
2. डाॅ. देवराज, भारतीय संस्कृति, पृष्ठ. 20
3. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, विचार और वितर्क, पृष्ठ. 181
4. बाबू गुलाबराय, भारतीय संस्कृति की रूपरेखा, पृष्ठ. 01
5. डाॅ. पूर्णचन्द शर्मा, संस्कृति के स्तम्भ, पृष्ठ. 12
6. सम्पा॰ द्वारिकाप्रसाद शर्मा, संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ, पृष्ठ. 934
7. सम्पा॰ वामन शिवराम आप्टे संस्कृत हिन्दी कोश, पृष्ठ. 640
8. डाॅ. हृदयनाराण मिश्र, विश्वकोश-9, पृष्ठ. 365
9. रोहित मेहता, दि इंटयूटिव फिलाॅसफी, पृष्ठ. 39
10. हिन्दी उपन्यासों में आंचलिकता की प्रवृत्ति, पृष्ठ. 289
11. लोहे के पंख, पृष्ठ. 333
12. नागार्जुन, बलचनामा, पृष्ठ. 185-186
13. वही, बाबा बटेसरनाथ, पृष्ठ. 17
14. वही, मैला आँचल, पृष्ठ. 30-31
15. वही, वही, पृष्ठ. 182
16. वही, मैला आँचल, पृष्ठ. 331
17. वही, परती परिकथा, पृष्ठ. 107
18. शिवप्रसाद सिंह रूद्र, अलग-अलग वैतरणी, पृष्ठ. 249
19. वही, अलग-अलग वैतरणी, पृष्ठ. 363
20. फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आँचल, पृष्ठ. 126
21. राही मासूम रजा, आधा गाँव, पृष्ठ. 163
22. वही,आधा गाँव, पृष्ठ. 182                                            
23. फणीश्वरनाथ रेणु, मैला आँचल, पृष्ठ. 126-127
24. भीष्म साहनी, तमस, पृष्ठ. 90
25. रांगेय राघव, कब तक पुकारूँ, पृष्ठ. 345-346

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