Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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शिक्षा और खेल एक सिक्के के दो पहलु

    1 Author(s):  DIVYA SHUKLA

Vol -  8, Issue- 3 ,         Page(s) : 5 - 6  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

शिक्षा किसी देश के विकास का आधार है। जिज्ञासा की तृप्ति और समस्याओं के समाधान के लिए मानव शिक्षा की ओर बढ़ता है। शिक्षा जब सुनिश्चित और अनुशासित होकर क्रियाशील बनती हैए तब ज्ञान के विविध क्षेत्रों में नए तथ्यों का नया आविष्कार होता है। शिक्षा ही एकमात्र ऐसा साधन है जिसके द्वारा मानव अपना और समाज का उत्थान करता है। शिष्ट व्यक्ति ही अच्छाई.बुराईए गुण.अवगुण को जान सकता है। जिसे ज्ञान के कारण अच्छाई और बुराई जानने का का बोध हो जाएए वही ज्ञानी कहलाता है। यही कारण है कि विश्व के सभी देशों में शिक्षा पर अनुसंधान होते रहते हैं। डॉण् सत्यप्रकाश पचौली के मतानुसारए ̒शिक्षा का अर्थ है सीखना। यह सीखना प्रत्येक पीढ़ी अपने शैशवाकाल से ही प्रारंभ कर देती है तथा इस आयु से शिक्षा द्वारा जो कुछ भी सीखा जाता है वह व्यक्ति के व्यवहार का अंग बन जाता है।̕ शिक्षा के विकास के कारण व्यक्ति के काम करने के तरीकों में भी परिवर्तन होता जाता है। विचार करें तो हर समाज की अपनी आवश्यकताएँ होती हैं।

1 शिक्षा के आयाम डॉ सत्यप्रकाश पचौली (अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस दिल्ली), पृ 32
2 शिक्षा के आयाम डॉ सत्यप्रकाश पचौली (अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस दिल्ली), पृ 79
3 बुनियादी शिक्षा और समाजिक परिवर्तन केदारनाथ सिंह यादव और रामजी यादव (अर्जुन पब्लिशिंग हाऊस दिल्ली), पृ. 58

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