Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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स्त्री-अस्मिता और नाटककार मृदुला गर्ग

    1 Author(s):  DR. SUDHANSHU KUMAR SHUKLA

Vol -  8, Issue- 4 ,         Page(s) : 5 - 8  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

अतीत की नारी और सभ्य युग की नारी में बहुत अन्तर है। इसके कारण भी स्पष्ट हैं। शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, अधिकार और समाज व्यवस्था के परिवर्तनों से नारी का रूप बदला है। आज की नारी उसी विकसित परम्परा का नवीनतम उत्कर्ष है। नारी ने जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पायी है।यद्यपि कई बार सामान्य दृष्टि से विचार करने पर यह लगता है कि नारी की उपलब्धियाँ महत्त्वपूर्ण हैं किन्तु इन उपलब्धियों को पूरी नारी जाति पर लागू नहीं किया जा सकता। स्त्री और पुरूषों की समानता का प्रश्न भी इसी स्थिति में पैदा होता है। यह प्रश्न कब तक बना रहेगा इस संबंध में तो कुछ नहीं कहा जा सकता किन्तु वर्तमान साहित्य और समाज का बर्ताव इस सोच पर पुनर्विचार के लिए विवश अवश्य कर रहा है। डॉण् माहेश्वर के अनुसार पुरूष की अधीनता को स्वीकार कर स्त्री ने उसी में मुक्ति और संरक्षण की तलाश शुरू की है.

  1.   दिनमान टाइम्सए संपादकः घनश्यामं पंकजए जून 1990ए पृष्ठ 21
  2.   महिला कहानीकारए प्रतिनिधि कहानियाँए संण् पुष्पपाल सिंह
  3.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गए पृण्. 40.41
  4.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गए पृण्. 38
  5.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गए पृण् 34.35
  6.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गए पृण् 52.53
  7.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गए पृण् 102.104
  8.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गए पृण् 163
  9.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गए पृण् 119
  10.    कैद.दर.कैदए मृदुला गर्गण् पृण् 132

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