Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 504    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

अर्थालङ्कारों में सादृष्यमूलक अलङ्कार

    1 Author(s):  KALPANA PANCHOLI

Vol -  1, Issue- 1 ,         Page(s) : 56 - 61  (2010 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

काव्यशास्त्र में कथन शैली को अलङ्कार कहते हैं। इसके द्वारा वक्ता श्रोता के ऊपर अपना प्रभाव सफलतापूर्वक डाल सकता है। जिस प्रकार लोक में कटक, कुण्डल आदि विविध अलङ्कार कामिनी के शरीर को विभूषित करते हैं उसी प्रकार उपमादि अलङ्कारों के द्वारा कविता कामिनी का सौन्दर्य बढ़ जाता है।

  1. मम्मट- काव्यप्रकाषः ८/६७
  2. अलङ्करणमर्थानामलङ्कार इष्यते। 
  3. तं विना शब्दसौन्दर्यमपि नास्ति मनोहरम्।। 
  4. अर्थालङ्काररहिता विधवेव सरस्वती। 
  5. -अग्निपुराणः, ३४४/१-२ 
  6. प्रतिवस्तुप्रभृतिरूपमाप्रपञ्चः। 
  7. आचार्य वामन- काव्यालङ्कारसूत्र, ४/३/१ 
  8. अप्पयदीक्षित-चित्रमीमांसा, पृ.६ 
  9. उपमैवानेकप्रकारवैचित्र्येणानेकालङ्कार बीजभूतेति प्रथमं निर्दिष्टा। 
  10. -उपरिवत्, पृ.२४ 
  11. सादृष्य सुन्दरं वाक्यार्थोपस्कारमुपमालङ्कृतिः। 
  12. -पण्डितराज जगन्नाथ-रसगङ्गाधरः, पृ. २०४ 
  13. उपमानाद् यदन्यस्य व्यतिरेकः स एव सः। 
  14. -मम्मट-काव्यप्रकाषः, सूत्र १५८ 
  15. तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः। 
  16. -उपरिवत्, सूत्र १३८ 
  17. अध्यवसाये व्यापारप्राधान्ये उत्प्रेक्षा। 
  18. -रुय्यक- अलङ्कारसर्वस्वः, सूत्र २२ 
  19. अध्यवसित प्राधान्ये त्वतिषयोक्तिः। 
  20. -उपरिवत्, सूत्र २३ 
  21. प्रतिवस्तूपमा सा स्याद्वाक्ययोर्गम्यसाम्ययोः। 
  22. एकोऽपि धर्मः सामान्योयत्र निर्दिष्यते पृथक्।। 
  23. विष्वनाथ- साहित्यदर्पणः, १०/४९ 
  24. रुय्यक- अलङ्कारसर्वस्वः, सूत्र २७ 
  25. प्रकृतानामप्रकृतानां चैकसाधारणधर्मान्वयोदीपकम्। 
  26. -पण्डितराज जगन्नाथ-रसगङ्गाधरः, पृ. ४३१ 
  27. औपम्यस्य गम्यत्वे पदार्थगतत्वेन प्रस्तुतानामप्रस्तुतानां वा समानधर्माभिसम्बन्धे तुल्ययोगिता। 
  28. रुय्यक- अलङ्कारसर्वस्वः, सूत्र २४ 
  29. सा सहोक्तिः सहार्थस्य बलादेकं द्विवाचकम्। 
  30. मम्मट-काव्यप्रकाषः १०/११२ 
  31. विषेषणानां साम्यादप्रस्तुतधर्मावच्छेदः समासोक्तिः। 
  32. ततश्चाप्रस्तुतव्यवहारसमारोपः। न तु रूप समारोपः। 
  33. -षोभाकरमित्र-अलङ्काररत्नाकरः, सूत्र ४३ तथा वृत्ति 
  34. अप्रस्तुतेन व्यवहारेण सादृष्यादिवक्ष्यमाणप्रकारान्यतमप्रकारेण प्रस्तुतव्यवहारो 
  35. यत्र प्रषस्यतेसाऽप्रस्तुतप्रषंसा। 
  36. -पण्डितराज जगन्नाथ-रसगङ्गाधरः पृ. ५३७ 
  37. तेन प्रकृताप्रकृतगतत्वेन कविप्रतिभोत्थापिते सन्देहे सन्देहालङ्कारः। 
  38. -रुय्यक- अलङ्कारसर्वस्वः, सूत्र १८ की वृत्ति
  39. सादृष्याद्वस्त्वन्तर प्रतीतिभ्र्रान्तिमान्। 
  40. उपरिवत्, सूत्र १९ 
  41. उपरिवत्, सूत्र ६० तथा वृत्ति 
  42. निदर्षना। अभवन् वस्तुसम्बन्ध उपमापरिकल्पकः। 
  43. -मम्मट-काव्यप्रकाषः, १०/९७ 
  44. उपमानोपमेयत्वे एकस्यैवैकवाक्यगे अनन्वयः। 
  45. उपमानान्तरसम्बन्धाभावोऽनन्वयः। 
  46. मम्मट-काव्यप्रकाषः, सूत्र १३४ तथा वृत्ति। 
  47. विपर्यास उपमेयोपमा तयोः। 
  48. उपरिवत्, सूत्र १३५ 

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details