Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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समकालीन मलयालम और हिन्दी कविता में बदलते सामाजिक संबन्ध

    1 Author(s):  MAHESH. S

Vol -  9, Issue- 9 ,         Page(s) : 10 - 16  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

समकालीनता बहु आयामी शब्द है । मलयालम और हिन्दी कविता में समकालीनता का अर्थ विशेष रूप से आधुनिकता के उत्तर संदर्भ के साथ जुडा हुआ है । समकालीनता आधुनिकता की अगली क¬डी होने पर भी आधुनिकता के हर केन्द्रीकरण की प्रवृत्तियों को विच्छिन्न कर के उभरी है । मलयालम के प्रसिद्ध आलोचक वत्सलन वातुशेरी के अनुसार “आधुनिकता तक मलयालम कविता सवर्ण सौन्दर्य बोध का ही आबंटन किया करती थी । सवर्ण लोगों की आर्थिक स्थिति में हुए ह्रास के साथ अवर्ण तथा अल्पसंख्यकों की आर्थिक स्थिति में सुधार के कारण मलयासम के सार्वजनिक संवाद क्षेत्र में तथा उसके माध्यम से कविता में अल्पसंख्यक तथा दलित एवं स्त्री सहित हाशिएकृत विशाल समाज का प्रवेश हुआ । हिन्दु सांस्कृतिक देशीय भावना का पूर्ण रूप से रिस गयी काव्य संस्कृति का अनेक रूपों में हुए प्रस्फुटन ही उत्तर आधुनिक कविता है ” समकालीन समय में लिखी जा रही कविता के बारे में राजेश जोशी का कहना है “ इस समय जो कविता लिख रहा है वह एक ऐसा कवि है जो शताब्दियों के बीच आवाजाही कर रहा है । उसके पास पिछली सदी में बने और टूटे स्वप्न और स्मृतियाँ भी हैं और इस सदी की नई वास्तविकताएँ भी । आज के कवि को उद्योग और प्रौद्योगिकी जैसी दो अलग –अलग चरित्रों वाली विकट प्रणालियों और उसकी जटिल वास्तविकताओं के बीच आवाजाही करनी पडती है । अंतःकरण विहीन मुक्त बाज़ार और लोकतान्त्रिक स्पेस को दिनेदिन कम करती प्रौद्योगिकी ने समाज की गति और संरचना को ही नही बदला हैं , हर रचना की प्राख्या और उपाख्या को भी बदल दिया है । ” 2 बाहरी तौर पर देखा जाये तो समकालीनता से जुडी इन दोनों परिभाषाओं में विरुद्धता नज़र आती है । एक तरफ आधुनिकता के केन्द्रीकरण की विरुद्ध समकालीनता की लोकतांत्रिक स्वरूप को उभारा गया है तो दूसरी तरफ समकालीनता की विकेन्द्रित स्थिति की वजह से उभर रहे फासीवादि स्वरूप को दर्शाया गया है । वास्तव में इन दोनों परिभाषाओं की तह में समकालीनता की जटिल सामाजिक संबन्धों का समाजस्य विद्यमान है । समकालीन साहित्य विरुद्धों के सामंजस्य की बृहतर कानवाज़ है । सही मायने में इस विरुद्धता के सामंजस्य को समझने केलिए मानवीय सामाजिक संबन्धो के स्वरूप को समझना अनिवार्य है ।

1 डॉ वत्सलन वातुशेरी   मलयालासाहित्यानिरूपणम  अटरुकलय अटयालंग्ल  Page 183 
2 राजेश जोशी  समकालीनता और साहित्य    Page 120
3 NOAH HARARI YUVAL   SAPIENS A BRIEF HISTORY OF HUMANKIND  Page 25
4 स्वप्निल श्रीवास्तव दृ बेघर.ईश्वर ए मुझे दूसरी पृथ्वी चाहिए पृण्सं 117 
5 डॉ एम षण्मुखन    कालत्तिन्टे साक्क्ष्यंग्ल    Page no 168
6 पंकज राग .यह भूमंडल की रात है पृ सं 10
7 डॉ एम षण्मुखन    कालत्तिन्टे साक्क्ष्यंग्ल    Page no 212
 8 पंकज राग. यह भूमंडल की रात है पृ सं 70
9 पंकज राग .यह भूमंडल की रात है पृ सं 57
10 अरुण कमल .नये इलाके में पृ सं 13

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