Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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साम्राज्यवाद की चक्करघिन्नी में भारतीय किसान

    1 Author(s):  DR. KRISHAN KUMAR

Vol -  10, Issue- 2 ,         Page(s) : 16 - 20  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

नवनिर्मित काॅरपोरेट भारत में कृषि और किसान पर संकट लगातार गहराता जा रहा है। वे बुरे समय से गुजर रहे हैं। हम प्रायः अपने बुरे समय की तुलना औपनिवेशिक भारत के दौर से करते हैं। अंग्रेजों ने ‘सम्य और विकास’ के आकर्षक माॅडल से अपने साम्राज्य की नींव डाली तथा धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था पर काबिज होते चले गए। उन्होंने अपने साम्राज्य को सुदृढ़ और मजबूत बनाने के लिए देशी शासकों, पूंजीपतियों और सामंतवादी ताकतों से मिलकर हमारे विकसित लघु-कुटीर उद्योगों को नष्ट किया तथा हमारी आवश्यकताओं एवं प्राकृतिक संसाधनों का अपनी औद्योगिक जरूरतों के मुताबिक इस्तेमाल किया।

1. राममनोहर लोहिया, अर्थशास्त्र माक्र्स से आगे, पृष्ठ 18
2. रामशरण जोशी - असंतुलित विकास के आयाम, समयांतर मई, 2012, पृष्ठ 7
3. अनिल चैधरी - कृषि क्षेत्र का गतिरोध और भूमि लूट अभियान आलेख, उदारीकरण और विकास का सच, सं. उर्मिलेश, पृष्ठ 189
4. अनिल चमड़िया - आर्थिक सुधार विकास का माॅडल और भारतीय किसान, आलेख, उदारीकरण और विकास का सच, सं. 3, सं. उर्मिलेश, पृष्ठ 200
5. अरुंधति राय: नव साम्राज्य के नए किस्से, पृष्ठ 216
6. उत्सा पटनायक - कृषि क्षेत्र के संकट, समयांतर, जुलाई 2011, पृष्ठ 21

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