Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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सामाजिक क्षेत्र में नारी

    1 Author(s):  DR. SUNITA

Vol -  5, Issue- 2 ,         Page(s) : 182 - 184  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

नारी मानव सृष्टि का अपरिहार्य अंग है। अपहिार्य तो यह सभी कालों, अवस्थाओं, स्थितियों में बनी रही, किन्तु पुरूष का अपरिहार्य बोध बदलता रहा। देवी मानवी, रानी, दासी, सेविका, भोग्य, शोभावस्तु न जाने कितने दृष्टिकोण से पुरूष ने इसे देखा है। आज समाज में नारी की स्थिति-परिस्थिति अधिकार-अनाधिकार आदि को लेकर पर्याप्त चर्चा-परिचर्चा चलती रहती है। विश्व प्रकृति नारी के रूप में मूर्त होकर नर के लिए अन्नतकाल से प्रेरणा और शक्ति का स्त्रोत रही है।

1. आशा रानी व्होरा, भारतीय नारीः दशा-दिशा ( दिल्ली नेशनल प्रकाशन 1983) पृ॰ 30
2. आशा रानी व्होरा भारतीय नारीः दशा-दिशा ( दिल्ली नेशनल प्रकाशन 1983) पृ॰ 31
3. आशा रानी व्होरा भारतीय नारीः दशा-दिशा ( दिल्ली नेशनल प्रकाशन 1983) पृ॰ 57

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