Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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प्रभा खेतान के साहित्य में स्त्री-विमर्श

    1 Author(s):  RAVINDRA KUMAR

Vol -  10, Issue- 10 ,         Page(s) : 11 - 16  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

आधुनिक समय में साहित्य का केन्द्रिय विषय स्त्री-विमर्श ,दलित-विमर्श, किन्नर-विमर्श है । हमारे समाज में महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझा जाता है । आये दिन समाचार पत्रों , सोशियल मीडिया , न्यूज चैनलों में उनके खिलाफ अभद्रता , मारपीट, बालात्कार, दहेज जैसी घटनाओं की खबर सामने आती रहती है ।स्त्री पुरूष के समान ही अनादि काल से लिखती आ रही है । मध्यकाल में कबीर के समान ही कश्मीर की भक्त कवयित्री लल्लेश्वरी ने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार , पाखंड और दोहरी नीतियों का विरोध किया था । मीरा ने भी राजकुल मर्यादा से हटकर भक्तिपरक गीत लिखें ।महादेवी वर्मा ने ’अतीत के चलचित्र’ ’स्मृति की रेखाएं’ और ’श्रृंखला की कड़ियां’ , में भारतीय पुरूष प्रधान मानसिकता से पीड़ित नारी का चित्रण किया है । समाज में नारी को भोग विलास की वस्तु समझा जाता है । व्यवस्था ने स्वयं को अनेक बंधनों से मुक्त रखकर नारी कों अनेक बंधनों में जकड़कर रखा है । आधुनिक काल में साहित्यकारों ने नारी चरित्रों को केवल नायिका रूप में चित्रित नहीं किया ,बल्कि नारी के उपेक्षित जीवन को भी न्याय दिया है । नारी को अपनी अस्मिता एवं मूल्याधिकार के लिए उसे निरंतर संघर्ष करना पड़ा है । मानवीय भावना और मानसिकता क्षमता के स्तर पर नारी पुरूष के समक्ष है । मानव जाति की सभ्यता एवं सामाजिक विकास का मूल्य स्त्रोत नारी है ,और नर-नारी के आपसी सहयोग से ही विकास सम्भव हुआ है ।

1- मनुस्मृति अध्याय-3 श्लोक 56 ।
2- याज्ञवल्क्यम् स्मृति ।
3- मृणाल पाण्डे -स्त्री देह की राजनीति से देश की राजनीतिक पृष्ठ-14 ।
4- डाॅ0 करूणा उमरे - स्त्री विमर्श साहित्यिक तथा व्यावहारिक संदर्भ पृष्ठ-03 ।
5-  डाॅ0 सुदेशबाला -नारी अस्मिताःः हिन्दी उपन्यासों में -61।
6-  तसलीमा नसरीन,- औरत के हक में, पृष्ठ- 69 ।
7-  प्रभा ख्ेातान, -स्त्री उपेक्षिता सीमोन द बोउवार, भूमिका, पृष्ठ- 23 ।
8-  क्षमा शर्मा -स्त्रीत्ववादी विमर्श-समाज और साहित्य पृष्ठ-11 ।

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