Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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समकालीन कविता मे जनवादी संवेदना और स्वर
1 Author(s): PROF. BAL MUKUND PANALI
Vol - 4, Issue- 1 , Page(s) : 58 - 63 (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
स्ंावेदना और स्वर की दृष्टि से विगत एक दशक में हिन्दी कविता ने विचारोत्तेक करवट बदली है, जिसे समकालीन समर्थ-सुधि समीक्षकों एवं समालोंचकों ने कवियों की जनवादी रूझान या प्रवृत्ति की संज्ञा दी है। युग के जीवन यथार्थ और मानवीय भावों की संवेदनात्मक अभि-व्यक्ति के लिए कविता पहले भी विश्वासनीय एवं आत्मीय थी और आज भी है। परिवेश परिवर्तन के साथ पाठकों की अभिरूचि एवं संस्कार के बदलाव की जनवादी कवियों ने अच्छी तरह परखा एवं समझा है और उसे जीवंत स्वर देने में भी सफलता पायी है। ऐसे कवियों ने जहां कुंठा, संप्ताश, शोषण, उत्पीड़न से आक्रांत जिन्दगी की मुखर एवं उजागर किया है, यही ज्ञानात्मक संवेदन और संवेदनात्मक ज्ञान के प्रति उदासीनता भी दिखलायी है। फिर भी उन्होंने कविता के लिए परिवेश ओर धरातल निर्मित कव ’कविता की वापसी कराने में अपनी सार्थ भूमिका निभाई है।