Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh
ISSN 2321 - 9726 (Online) New DOI : 10.32804/BBSSES
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जैन परम्परा में आचार तत्त्व
1 Author(s): SEEMA BANSAL
Vol - 5, Issue- 4 , Page(s) : 35 - 41 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES
जैन परम्परा में आचार तत्त्व पर अत्यध्कि बल दिया गया है। इस परम्परा में श्रमणों के लिए पंच महाव्रत और श्रावकों के लिए पांच अणुव्रत का विधन यह समझ कर किया गया है कि भिक्षुओं की भांति गृहस्थ अतिकठोर व्रतों का पालन न कर सकेंगे, इसलिए गृहस्थव्रतों की कठोरता कम कर दी गयी। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहµ ये पाँच आचरण सम्बन्ध्ी नियम हैं। भगवान् महावीर स्वामी द्वारा प्रतिपादित जैन ध्र्म अप्रचार से समन्वित हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से यज्ञयागादि का विरोध् किया। बाह्य शु(ि एवं कर्मकाण्ड को निरर्थक बताकर उन्होंने विशु( आचरण की प्रतिष्ठा पर बल दिया। उनका विचार था कि ‘जो चरित्राचार के गुणों से संयुक्त है, जो सर्वोत्तम संयम का पालन करता है, जिसने समस्त आड्डवों को रोक दिया है, जिसने कर्मों का नाश कर दिया है, वह विपुल उत्तम और ध््रुवगति मोक्ष को प्रदान करता है।