Bhartiya Bhasha, Siksha, Sahitya evam Shodh

  ISSN 2321 - 9726 (Online)   New DOI : 10.32804/BBSSES

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योगाधारित षिक्षा द्वारा बालक का सर्वांगीण विकास

    1 Author(s):  MAHENDRA KUMAR TIWARI

Vol -  4, Issue- 2 ,         Page(s) : 20 - 27  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/BBSSES

Abstract

बालक ईष्वर की अनुपमकृति है। इस कृति को प्रकृति से संस्कृति में उन्नयन करना माता-पिता, गुरू व समाज का दायित्व है। बालक वह बीज है जिसमें सर्वांगीण विकास रूपी विषाल वट वृक्ष सन्निहित रहता है। भगवान षंकर ने भगवान के बालरूप की वन्दना करते हुए कहा है: ’’वंउउं बाल रूप सोई रामू। सब विधि सुलभ जपत जिस नामू।

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  1. तुलसीदास        बालक की महिमा (श्री रामचरित मानस)
  2. ॅवतकेूवतजी         बालक की महिमा
  3. अरविन्द, महर्शि कोशो के प्रकार (उपनिशद में वर्णित)
  4. सिंह राणा प्रताप षिक्षा का अर्थ (सरस्वती षिषु मंदिर योजना एक परिचय)
  5. पेस्टालाजी         षिक्षा की परिभाशा
  6. ठाकुर रविन्द्रनाथ षिक्षा की परिभाशा
  7. अरविन्द, महर्शि षिक्षा की परिभाशा
  8. विवेकानन्द, स्वामी षिक्षा की परिभाशा
  9. तोमर लज्जाराम योग का अर्थ (भारतीय षिक्षा के मूल तत्व)
  10. पतंजलि, महर्शि योग की परिभाशा (पातंजल योग सूत्र)
  11. पतंजलि, महर्शि अश्टांग योग के प्रकार (पातंजल योग सूत्र)
  12. तोमर लज्जाराम प्राचीन भारतीय षिक्षा पद्धति (भारतीय षिक्षा के मूल तत्व)
  13. अल्तेकर सदाषिव
  14. डाॅ. अनन्त प्राचीन भारतीय षिक्षा पद्धति पर टिप्पणी

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